What is UGC 2.0 provision? Know why it is necessary to implement these, read the hindu editorial of January 9 | The Hindu हिंदी में: क्या है UGC का 2.0 प्रोविजन? जानिए क्यों इनको लागू करना जरूरी है, पढ़िए 9 जनवरी का एडिटोरियल

What is UGC 2.0 provision? Know why it is necessary to implement these, read the hindu editorial of January 9 | The Hindu हिंदी में: क्या है UGC का 2.0 प्रोविजन? जानिए क्यों इनको लागू करना जरूरी है, पढ़िए 9 जनवरी का एडिटोरियल

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42 मिनट पहले

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जब तक मूल्य प्रवाह 2.0 के प्रावधानों (प्रोविजन्स) को पूरी ईमानदारी के साथ लागू नहीं किया जाता, तब तक UGC की यह पहल मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।

 

यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) ने इतनी तेजी के साथ नए नियम, और दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसके कारण उच्च शिक्षा से जुड़े लोग इनमें से कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश पर ध्यान देने से चूक जाते हैं।

ऐसा ही एक दिशानिर्देश मूल्य प्रवाह 2.0 है, जो कि 2019 में जारी किये गए मूल्य प्रवाह का बदला हुआ स्वरूप है।

इसका लक्ष्य व्यक्तियों और संस्थानों को बेहतर संस्थानों के निर्माण के लिए प्रेरित करना है। इसका मानना है कि लोगों में अपने बुनियादी कर्तव्यों और संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरा सम्मान होना चाहिए।

साथ ही, उनमें देश के प्रति गहरे लगाव की भावना होनी चाहिए। इसकी शुरुआत मानव संसाधन प्रबंधक के एक सर्वे से हुई है, जिसमें विभिन्न संस्थानों में अनैतिक गतिविधियों के चलने की बात कही गई है।

ट्रिगर एक सर्वेक्षण के निष्कर्ष हैं, जो विभिन्न संस्थानों में अनैतिक प्रथाओं को उजागर करते हैं।

इनमें से सबसे प्रमुख हैं “नियुक्ति, प्रशिक्षण, वेतन और पदोन्नति में पक्षपात, यौन उत्पीड़न, पदोन्नति में लैंगिक भेदभाव, अनुशासन पर असंगत दृष्टिकोण, गोपनीयता की कमी, मुआवजे में लिंग भेद, मूल्यांकन में कारकों की अनदेखी, व्यक्तिगत लाभ के लिए विक्रेताओं के साथ व्यवस्था और भर्ती और नियुक्ति के दौरान लैंगिक भेदभाव शामिल हैं।

ये समस्याएं उच्च शिक्षा संस्थानों तक ही सीमित नहीं हैं, लेकिन उनमें इन समस्याओं को आसानी से देखा जा सकता है। कोई भी इस बात का दावा नहीं कर सकता है कि वे इन बुरे आचरणों से अछूते हैं। UGC को दिशा निर्देश जारी करने का श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए। हालांकि, भ्रष्टाचार और अनैतिकता को रोकने के लिए इतना कर देना ही काफी नहीं है।

जब तक मूल्य प्रवाह 2.0 के प्रावधानों को पूरी ईमानदारी के साथ लागू नहीं किया जाता, UGC की यह पहल मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी।

उच्च शिक्षा को नियमित करने वाले लोगों को प्रवेश, परीक्षा, नियुक्ति प्रक्रिया जैसे मामलों में थोड़े भी भ्रष्टाचार की आशंका पर कड़ी करवाई करनी चाहिए।

पारदर्शिता पर जोर

मूल्य प्रवाह 2.0 में प्रशासन में पारदर्शिता पर विशेष जोर दिया गया है। उच्च शिक्षा संस्थानों में कोई भी फैसला, संस्थान और जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, पूर्वाग्रहों के प्रभाव में आकर नहीं करना चाहिए।

मूल्य प्रवाह 2.0 में अधिकारियों के मनमाने तरीके से काम करने पर रोक लगाने के साथ ही, किसी भी तरह के भ्रष्टाचार पर सजा देने की मांग की गई है। हर स्तर के व्यक्ति को सोचने की पूरी आजादी होनी चाहिए और उन्हें अपनी राय साझा करने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

इन दिशा निर्देशों में उच्च शिक्षा संस्थानों से ‘ईमानदारी, ट्रस्टीशिप, भाईचारा, जवाबदेही, अपनापन, प्रतिबद्धता, सम्मान, जुड़ाव, स्थाईत्व, संवैधानिक मूल्यों और ग्लोबल सिटीजनशिप सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है।

यह एक तारीफ के काबिल कदम है, जिसे सही समय पर उठाया गया है, खास कर तब जब इन मूल्यों में गिरावट देखी जा रही है।

यूनिवर्सिटी के प्रशासन और अधिकारियों को तय करना चाहिए कि नियमों, कानूनों, अध्यादेशों और विनियमों के प्रावधानों का पूरी सख्ती के साथ पालन किया जाए।

उच्च शिक्षा प्रशासन की कार्यवाहियों के लिए दिए गए दिशा निर्देश में जवाबदेही, पारदर्शिता, निष्पक्षता, ईमानदारी और सबसे ऊंचे स्तर की नैतिकता को जरूरी माना गया है।

उन्हें हमेशा अपने संस्थान के हितों को ध्यान में रखते हुए कार्य करने का निर्देश दिया गया है, जिससे पढ़ने और शोध के लिए अनुकूल वातावरण तैयार हो सके। साथ ही, संस्थान में अच्छे कार्य संस्कृति को स्थापित करने पर जोर दिया गया है। यह भी कहा गया है कि अधिकारियों और कर्मचारियों को आर्थिक और अन्य संसाधनों के दुरूपयोग से बचना चाहिए। उन्हें किसी भी व्यक्ति, समूह, निजी व्यापर या सरकारी एजेंसी से ऐसे उपहार, उपकार, सेवा या अन्य चीजें नहीं लेनी चाहिए, जिससे उनके कार्य पर असर पड़ रहा हो।

गोपनीयता की समस्या

सूचना की गोपनीयता बनाए रखने की जरूरत पर जोर देना दुविधा में डालता है, क्योंकि यह जवाबदेही तय करने के लिए दिए गए, सूचना के अधिकार के खिलाफ जाता है।

असलियत में, उच्च शिक्षा संस्थानों को सभी जरूरी सूचनाएं खुद ही आम जनता के सामने रख देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। इससे आम जनता संस्थानों के कामकाज का आकलन कर अपने सुझाव दे सकेगी।

इन दिशा निर्देशों में फैसले लेने वाली समितियों, उप-समितियों और स्थायी समितियों की बैठकों के एजेंडे, कार्यवाही और बैठक के मुख्य बिंदुओं को जल्द से जल्द अपलोड करने का आग्रह किया गया है।

उन्हें आम लोगों के बीच अपने सालाना रिपोर्ट और ऑडिट किए गए खातों की जानकारी रखनी चाहिए। ऐसा करने से गलत आचरण को रोकने में मदद मिलेगी और आम लोगों के बीच संस्थानों के काम काज में विश्वास बढ़ेगा।

शिक्षण एक आदर्श व्यवसाय है, और शिक्षक छात्रों के ‘चरित्र, व्यक्तित्व और करियर को दिशा देने का महत्वपूर्ण काम करते हैं।

उन्हें खुद को छात्रों के बीच एक रोल मॉडल की तरह स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षकों का आचरण, पहनावा और बोलचाल नकल करने लायक हो।

दिशा निर्देश के अनुसार उन्हें अपनी यूनिवर्सिटी के नियमों, कानूनों, नीतियों और प्रक्रियाओं के प्रावधानों का पालन करना चाहिए। हालांकि, इन दिशा निर्देशों में शिक्षक संघों के मुद्दे पर कुछ नहीं लिखा गया है।

यूनियन और समर्थन

मूल्य प्रवाह 2.0 में कर्मचारी और छात्र संघों से विकास कार्यों में प्रशासन की सहायता करने और सम्मानजनक तरीके से मुद्दे उठाने की उम्मीद की है।

हालांकि, इस सुझाव से ऐसा लगता है कि संघों को प्रशासन के सहयोगी की तरह काम करने का निर्देश दिया गया है और उन्हें अपने सदस्यों के लिए आवाज उठाने से बचना चाहिए। भागीदारों के संगठन और संघ सामूहिक रूप से दबाव बनाने का काम करते हैं और अपने सदस्यों के हितों के लिए लड़ते हैं।

हालांकि, उनसे हमेशा प्रशासन का विरोध करने की उम्मीद नहीं की जाती, लेकिन उनसे यह उम्मीद नहीं रखी जा सकती कि वे प्रशासन के पक्ष में खड़े होंगे।

उच्च शिक्षण संस्थान विद्वानों के समुदाय हैं जहां भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। हर भागीदार को सक्रिय रूप से संस्थान की संस्कृति और मानकों की रक्षा, संरक्षण और प्रचार करने की इजाजत होनी चाहिए।

सहभागिता या सहयोग के विचार को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि प्रशासन किसी भी निर्णय में भागीदारों को अपने साथ जोड़े और उनकी राय ले।

मूल्य प्रवाह 2.0 इस बात पर जोर देता है कि कर्मचारी और छात्र संघ सम्मानजनक तरीके से अपने मुद्दों को उठाए।

चूंकि, दिशानिर्देश में ‘सम्मानजनक तरीके’ की कोई परिभाषा तय नहीं की गई है, इस प्रावधान का इस्तेमाल भागीदारों की सामूहिक आवाजों को डराने, दूर करने, चुप कराने या कमजोर करने के लिए किया जा सकता है। यह खतरा एक सच्चाई है। शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के संघों और यूनियनों को अक्सर मामूली बहाने बनाकर प्रतिबंधित और निलंबित कर दिया जाता है।

उनके विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे लोगों और चुने हुए प्रतिनिधियों पर आमतौर पर आचार संहिता (code of conduct) का उल्लंघन करने और संस्थानों के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया जाता है।

इनमें से कई लोग और संगठन अदालतों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। स्वाभाविक तौर पर ऐसे प्रावधानों से फायदे कम और नुकसान ज्यादा है।

सत्ता में बैठे लोगों को असहमति की आवाजों से असुविधा हो सकती है।

ध्यान से देखा जाए तो ऐसी आवाजें ही संस्थानों के स्तर को ऊंचा करने और फैसलों के स्थायित्व के लिए जरूरी हैं।

लेखक: फुरकान कमर, जामिया मिलिया इस्लामिया में प्रबंधन के प्रोफेसर हैं।

Source: The Hindu

 

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